पंचामृत सी पंचकन्या #लेखनी नॉन स्टॉप कहानी प्रतियोगिता-09-May-2022
अध्याय -2
नीलिमा का जीवन और अहिल्या
---------------------------------------------------------
बुचिया ओ बुचिया...
नीलिमा पंचम को पुकारती हुई उसके कमरे में आती है..
ये किया काॅलेज से आते ही पढ़ने बैठ गई, चल जल्दी से हाथ मुँह धोकर आ खाने के लिए।
पंचम किताब का वह पन्ना जो वो पढ़ रही थी बुक मार्क रख बंद करती हुई माँ के गले से लिपट जाती है। ये क्या माँ तुमने भी अब तक खाना नही खाया। अच्छा बड़ी दीदी का फोन आया था क्या, ठीक तो हैं अब वो।
"हाँ, सुबह फोन किया था निशा ने ठीक है अब वो। "
नीलिमा ने पंचम के पास रखी किताब का कवर फोटो देखते हुए कहा, अब ये क्या पढ़ रही है मेरी बिटिया। दो मिनट भी अपनी आँखों को आराम नहीं देगी तो देख अभी से मेरी तरह मोटा वाला चश्मा लग जाऐगा। बड़े ही प्यार से पंचम के बालों को सहला रही थी नीलिमा।
पंचम उसकी सबसे छोटी बेटी, जितनी सुंदर उतनी ही जिज्ञासु प्रवृति की। अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए किताबों में घुसी रहती, उसकी चारों बहने उसे किताबी कीड़ा ही कहती।
"मम्मा आप तो रोज रामायण पढ़ती हो ना, सुग्रीव और बाली की माँ कौन थी, क्या नाम था उनका। क्या वो बहुत बुरी औरत थी।" अपने प्रश्नों की बौछार के साथ वो नीलिमा की गोद में सिर रख बड़े ही कौतूहल से माँ को देख रही थी पंचम।
"अच्छा तो ई इंगलिश में रामायण पढ़ रही हो बुचिया। "
प्यार से अपनी छोटी बिटिया के गालों को थपथपाती है नीलिमा।
यादों के भवर में खो जाती है वो ,ये रामायण और धार्मिक ग्रंथ ही तो उसे शक्ति दिया करते हैं हर मुश्किल घड़ी में लड़ने की, हर समस्याओं का समाधान खोजने की। इधर नीलिमा को शांत देख पंचम फिर से उस किताब को पढ़ने में लग जाती है माँ के गोद में लेटे हुऐ वो अपनी कहानियों की दुनिया में और नीलिमा अपने यादों के भवर में।
11 साल की ही तो थी वो जब विवाह हुआ था उसका उससे उम्र में 10 साल बड़े आनंद से वो दिल्ली में रहकर पढा़ई कर रहा था। नीलिमा उस गाँव की सीधी सादी लड़की जहाँ लड़कियों के पढ़ने के लिए ना तो कोई स्कूल था और ना ही गाँव वाले लड़कियों को भी शिक्षित होना चाहिए के महत्व को समझते थे।
वो तो सिर्फ खेत खलिहान में तितली की तरह उड़ती, अपनी निर्मल हँसी से पंक्षियों की तरह चहचहाती। पूरे गाँव की सबसे सुंदर लड़की, जो भी एक नजर देखे ताकता रह जाऐ। दूध में गुलाब की पंखुड़ियों सी वो, लंबे काले केश,नीली आँखें, हिरनी सी चाल।उसके नैन नक्श तो इतने सुंदर थे जैसे भगवान ने बड़ी ही फुर्सत में उसे बनाया जिस तरह कोई मूर्तिकार अपनी सबसे सुंदर मूर्ति को गढ़ता है। जीती जागती संगमरमर की मूरत सी ही तो थी नीलिमा। अपनी नीली आँखों के कारण ही तो नीलिमा नाम पड़ा था उसका।
उसके गाँव में अधिकतर सभी स्त्री और पुरूष, सभी का रंग तो काला ही था जैसे काजल का टीका लगा हो उस हरे भरे गाँव में। चारों ओर हरियाली, सभी के बीच वो तो आसमान से उतरी परी समान लगती थी। उसके माता पिता के साथ पूरा गाँव उसे देवी माँ का आशीर्वाद ही समझता था। फिर इतने बड़े घर से रिस्ता आया तो सभी बहुत खुश थे, उन दिनों गाँव वाले छोटी उम्र में ही बच्चियों का विवाह तो करवा देते पर गौना पाँच साल बाद ही करवाते।
नीलिमा के माता पिता अपने राजकुमार से दामाद को पाकर प्रसन्न थे। नीलिमा का सौंदर्य दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। माँ को भय होता कि किसी की बुरी नज़र ना लग जाए उसकी बिटिया को। दो भाईयों में एक बहन सबकी लाडली नीलिमा। भविष्य के सपने बुनती उन पाँच सालों में विवाह से गौने के बीच का समय पहाड़ जैसा लगता था उसे।आनंद विवाह के उपरान्त होने वाले रस्मों और तीज त्यौहार पर आता तो नीलिमा के लिए शहर से उपहार लाना ना भूलता।
सब कहते गौने के बाद तो बड़े शहर दिल्ली में रहेगी, फिर इस छोटे से गाँव और हम सब को तो भूल ही जायेगी ना रे नीलिमा।
ना कभी ना भूलूंगी आप सबको, अपने गाँव को पोखर, गाछी ये पंक्षी और आप सबकी यादें हमेशा रहेगी मेरे दिल में।
सोलहवां सावन उसके जीवन का उसके लिए बिल्कुल अलग था, गौने के बाद शहर में अपने पति के सरकारी आवास में।
इतने बड़े शहर में वो खुद को बिल्कुल अकेला पाती। आनंद बहुत ही ऊँचे पद पर सरकारी नौकरी करता था, अपनी मेहनत के बल पर वो आई एस आॅफिसर बन गया था। नीलिमा को अपने साथ शहर तो ले आया पर उसके पास समय ही कहाँ था, दिन भर नीलिमा अकेली रहती। गाँव में स्वच्छंद आजाद चिड़ियाँ सी नीलिमा को जैसे सोने के पिजंरे में कैद कर दिया गया था।
कभी साल में एक दो बार आनंद अपनी माँ को गाँव से शहर लाता। वो दिन और बुरे गुजरते अपने माँ बाप की गरीबी और उनके बारे में अपशब्दों को सहना बड़ा ही कठिन था उसके लिए। फिर पोते की आस लगाऐ बैठी थी जमुना। जब पहली बार नीलिमा गर्भवती हुई सत्रह साल की ही तो थी, पहली संतान बेटा ही होना चाहिए कि धुन लगी हुई थी जमुना को। बेटा या बेटी स्त्री के वश की बात तो नहीं है कौन समझाता उसे। नीलिमा को वो पहली प्रसव पीड़ा याद कर रही थी,और आँखों से आँसू बह रहे थे। बेटा हो या बेटी प्रसव पीड़ा तो एक समान होती है।
पंचम कहानी पढ़ने में व्यस्त थी, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था उन शब्दों पर.. जब अहिल्या का नाम पढ़ा, वो औरत जो कहानी की नायिका थी वो आहिल्या...
"इट्स इम्पोसिबल"
कहती हुई पंचम नीलिमा की गोद से अपना सिर उठा बैठ गई नीलिमा की आँखें भरी हुई थी।
मम्मा, फिर पुरानी बाते याद कर रही हो। चलो ना भूख लगी है कहते हुऐ पंचम वाशरूम में फ्रेश होने चली जाती है। उसके आस पास कहानी का वही दृष्य नाचता रहता है.. जमीन पर टूटा घोंसला चिड़ियाँ के बच्चों की वो चीखें , इंद्र के पैरों तले कुचलना उन्हें.. आहिल्या के खुले केश, अस्त व्यस्त कपड़े। जिस तरह कहानी में उसकी सुंदरता दिखाई है पंचम ने पहले भी कई बार पढ़ा सुना है अहिल्या माता जो हिंदु धर्म की पंचकन्या में एक है, सबसे सुंदर थी।
विवाहित स्त्री का गैर पुरुष से प्रणय संबंध स्त्री की ईच्छा से। इंद्र तो देवता हैं फिर वो ऐसा कैसे कर सकते हैं, कैसे इतने निष्ठुर बन एक विवाहित नारी संग प्रेम या फिर सिर्फ वासना। जीवों की हत्या, देव द्वारा।
पंचम फ्रेश हो नीलिमा के पास आती है जो अभी भी कमरे में अपनी यादों में खोई है। मम्मा चलो ना भूख लगी है, नीलिमा लौटती है वर्षों पुरानी यादों से और किचन में आ खाना निकाल दोनों माँ बेटी डाइनिंग टेबल पर आ खाना तो खा रहे हैं पर दोनों अपनी ही दुनिया में गुम हैं.. नीलिमा अपनी यादों में और पंचम अहिल्या और इंद्र की कहानी में।
आगे नीलिमा की कहानी और पंचकन्या के बारे में उठते पंचम की जिज्ञासा को जानने के लिए पंचामृत सी पंचकन्या इस कहानी से जुड़े रहिऐ। आपकी बहुमुल्य समीक्षा का इंतज़ार रहेगा।
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
##लेखनी नॉन स्टॉप 2022 प्रतियोगिता
Reyaan
13-May-2022 07:43 PM
Very nice 👍🏼
Reply
Seema Priyadarshini sahay
12-May-2022 07:02 PM
बहुत खूबसूरत
Reply
नंदिता राय
12-May-2022 06:45 PM
Nice 👍🏼
Reply